Spread the love
10 Views

Loading

डा.महेश शर्मा, सांसद ने इकोफ्रेन्डली क्लासरूम का उद्घाटन किया
नोएडा/ फेस वार्ता भारत भूषण: डा.महेश शर्मा , सांसद गौतम बुद्ध नगर एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार ने पंचशील बालक इंटर काॅलेज सैक्टर 91 नोएडा में शुगरक्रीट गन्ने के कचरे से बने ईको-फ्रेंडली क्लासरूम का उद्घाटन किया।
शुगरक्रीट निर्माण तकनीक को भारत में केमिकल सिस्टम टेक्नोलाॅजी ने यूनिवसिर्टी आॅफ ईस्ट लंदन के संस्टेन्बलिटी रिसर्च इन्स्टीच्यूट के सहयोग से लाया गया है। यू.ई.एल नेट-जीरो समाधानों पर शोध के लिए प्रतिबद्ध है, जो वैश्विक समुदायों पर सीधा और सकारात्मक सामाजिक, पर्यावरणीय एवं आर्थिक प्रभाव डालते हैं।

शुगरक्रीट के सह-निर्माता और यू.ई.एल. संस्टेन्बलिटी रिसर्च इन्स्टीच्यूट के एसोसिएट एलेन चांडलर ने इस परियोजना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पहल दर्शाती है कि शुगरक्रीट कैसे समुदायों को स्थायी निर्माण विधियों में स्थानांतरित करने में मदद कर सकता है। हालांकि, इसके लिए आवश्यक सामग्रियों और कौशल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक चुनौती है, लेकिन हमारी साझेदारियां एक लो-कार्बन भविष्य की राह बना रही हैं।
सांसद डा. महेश शर्मा ने अपने संबोधन के दौरान अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि जब मै पर्यावरण मंत्री के पद पर कार्यरत था तो वह अपने संस्टेनेबल पर्यावरण के प्रति सत्त भविष्य के निर्माण के दिषा में अग्रसर रहे और आज भी यह पहल से मुझे प्रसन्नता महसूस होती है जो कि प्रदूषण प्रभाव को कम करने की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। मिट्टी की ईंटों के निर्माण के लिए जीवाश्म ईंधन जलाना पड़ता है, जिससे हजारों टन कार्बन डाई आॅक्साई उत्सर्जित होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देती है। ईंट भट्ठियों से निकलने वाला वायु प्रदूषण स्थानीय एवं शहरी समुदायों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। ईंट बनाने में उपयोग की जाने वाली मिट्टी उपजाऊ टाॅपसवाइल से ली जाती है, जिससे फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और किसान प्रभावित होते हैं। जैसा कि उत्पादकों के द्वारा बताया गया कि शुगरक्रीट ब्लाक्स गन्ने से प्राप्त बगास (जिसे हिंदी में खोई कहा जाता है) और प्राकृतिक रूप से उपलब्ध खनिज बाइंडर्स से बनाए जाते हैं। ये पारंपरिक ईंटों की तुलना में कई मायनों में बेहतर शुगरक्रीट का कार्बन फुटप्रिंट नकारात्मक है, यह किफायती, हल्का, बेहतर इंसुलेशन वाला और सबसे महत्वपूर्ण, पर्यावरण व समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाला है। यह रोजगार सृजन में सहायक होने के साथ-साथ टॉपस्वाइल कटाव को भी रोकता है। भारत हर साल 400 मिलियन टन से अधिक गन्ने का उत्पादन करता है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा बायोमास उत्पादक देशों में से एक बन जाता है। यह सामाजिक और पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए एक अपूर्व अवसर प्रदान करता है।

इस कार्यक्रम के दौरान केशव वर्मा चेयरमैन हाईपावर कमेटी, सुनील सिंघल अध्यक्ष केमिकल सिस्टम टेक्नोलाॅजी, आर मोर प्रोजेक्ट डायरेक्टर यूनिवर्सिटी लंदन, विभूति झा डिविजन हेड बायोइनर्जी, मनोज अवस्थी, मनोज टंडन प्रधानाचार्य, सांसद प्रतिनिधि संजय बाली, रोहित कुमार, आर्किटेक्चर यूनिवर्सिटी आॅफ ईस्ट लंदन के छात्र एवं वरिष्ठ गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *