सिगरेट से भी अधिक खतरनाक हो रही दिल्ली एनसीआर की हवा:डॉ. रजत बजाज
फोर्टिस नोएडा ने बढ़ते प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए लंग कैंसर स्क्रीनिंग क्लिनिक की शुरुआत की
नोयडा/फेस वार्ता भारत भूषण : , सर्दियों का मौसम आते ही हवा में धुंध और प्रदूषण की मोटी चादर छा जाती है, जो न केवल पर्यावरण को दूषित करती है बल्कि हमारी सेहत, खासकर फेफड़ों पर गंभीर असर डालती है। सर्दियों में आलम यह है कि नोएडा और इसके आसपास के क्षेत्रों में बढ़ते वायु प्रदूषण से फेफड़ों का दम निकल रह है और यह कैंसर के मामलों में खतरनाक वृद्धि को जन्म दे रहा है। ऐसे में दिल्ली एनसीआर में फैल रहा प्रदूषण सिगरेट के धुएं से भी अधिक हानिकारक साबित हो रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 90% से अधिक मामलों का पता तब चलता है, जब रोग अपने अंतिम चरण में होता है। ऐसे गंभीर परिदृश्य में फोर्टिस अस्पताल, नोएडा ने एक विशेष लंग कैंसर स्क्रीनिंग क्लीनिक शुरू करने की पहल की है, जो शुरुआती जांच और उपचार के माध्यम से जान बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।यदि कोई व्यक्ति रोज़ एक पैकेट सिगरेट पीता है और यह आदत 20 सालों तक जारी रहती है, तो 40-65 या उससे अधिक उम्र के लोगों में फेफड़ों के कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे लोगों को नियमित रूप से अपनी जांच करानी चाहिए। स्मोकर्स के लिए इस खतरे को कम करने के लिए सबसे बड़ा बदलाव धूम्रपान छोड़ना है। पहले फेफड़ों के कैंसर के मामले 60-65 साल की उम्र के बाद सामने आते थे, लेकिन अब यह आयु सीमा घटकर और कम हो गई है। 2025 के लिए अनुमानित आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। 90% से अधिक मामलों में फेफड़ों के कैंसर का पता उस समय लगता है, जब यह आखिरी चरण में पहुंच चुका होता है और उपचार के विकल्प सीमित रह जाते हैं।बढ़ते प्रदूषण स्तर और हर साल नए रिकॉर्ड तोड़ते वायु प्रदूषण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब नॉन-स्मोकर्स भी फेफड़ों के कैंसर के खतरे से अछूते नहीं हैं। इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर देर से दिखाई देते हैं, जिनमें लगातार खांसी, सांस लेने में कठिनाई, खून का आना, वजन कम होना, भूख न लगना, सीने में दर्द और थकान जैसे संकेत शामिल हैं। प्रदूषण, विशेष रूप से पीएम 2.5, एक बड़ा कारण बन चुका है। फाइन पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5), जिसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है, को अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) ने कैंसरजनक पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया है। यह फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। फोर्टिस अस्पताल, नोएडा में हर बुधवार लंग कैंसर स्क्रीनिंग क्लिनिक चलाया जा रहा है, जहां फेफड़ों की विस्तृत जांच, स्मोकिंग स्क्रीनिंग और लो डोज़ सीटी स्कैन (LDCT) जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह स्कैन शुरुआती चरण में कैंसर का पता लगाकर इसे पूरी तरह ठीक करने में मदद करता है। डॉ. रजत बजाज, निदेशक एवं यूनिट हेड – मेडिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस नोएडा, बताते हैं, “फेफड़ों के कैंसर के मामले अब केवल धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं हैं। महिलाओं में भी, जो धूम्रपान नहीं करतीं, स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। शुरुआती जांच से इसे नियंत्रित किया जा सकता है और इलाज की संभावना बढ़ाई जा सकती है।प्रदूषण के बढ़ते स्तरों ने फेफड़ों को गंभीर खतरे में डाल दिया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि नोएडा जैसे क्षेत्रों में रहने वाले हर व्यक्ति का प्रभाव वैसा है, जैसे वे रोज़ 20-30 सिगरेट पी रहे हों। यही कारण है कि न केवल धूम्रपान करने वाले बल्कि नॉन-स्मोकर्स भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। डॉ. राहुल शर्मा, कंसल्टेंट – पल्मोनोलॉजी, फोर्टिस नोएडा, कहते हैं, “लोगों को फेफड़ों की देखभाल को प्राथमिकता देनी चाहिए। हमारे क्लीनिक में हर बुधवार, फेफड़ों की विस्तृत जांच, स्मोकिंग स्क्रीनिंग, और लो डोज़ सीटी स्कैन (LDCT) की सुविधा दी जा रही है। यह शुरुआती जांच से कैंसर का पता लगाकर इलाज को संभव बनाता है।डॉ. मयंक सक्सेना, एडिशनल डायरेक्टर – पल्मोनोलॉजी, फोर्टिस नोएडा, जोड़ते हैं, “प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता चलने पर इसे 100% तक ठीक किया जा सकता है। यह स्क्रीनिंग क्लिनिक लोगों को न केवल जागरूक करेगा बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा।फोर्टिस अस्पताल, नोएडा की यह पहल प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के खिलाफ एक सशक्त कदम है। शुरुआती जाँच और बेहतर इलाज से लोगों को इस खतरनाक बीमारी से बचाने में मदद मिलेगी।