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फेस वार्ता । बी बी  शर्मा :- 

“लोकतंत्र में जनता के मत के महत्त्व पर प्रोफ़ेसर बी एस रावत के विचार।”

भारत में हाल ही में 2024 में 18वीं लोकसभा के चुनाव संपन्न होने वाले हैं और कभी भी इसकी अधिसूचना जारी हो सकती है सभी राजनैतिक दल या वह राष्ट्रीय स्तर का हो या राज्य स्तर का हो अपने-अपने उम्मीदवारों पर मंथन कर रहे हैं किस उम्मीदवार को कहां से चुनाव में उतरा जाएगा भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है लोकतंत्र का अर्थ होता है जहां जनता सर्वोच्च होती है अर्थात अब्राहम लिंकन जी ने कहा था लोकतंत्र सरकार से अभिप्राय ऐसी सरकार से होता है

प्रोफेसर बी एस रावत 

जिसमें सरकार को चुनने का अधिकार जनता के हाथ में होता है लोकतंत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है लोक + तंत्र लोक का अर्थ होता है जनता और तंत्र का अर्थ होता है शासन अर्थात जनता का शासन लोकतंत्र शासन की सबसे सटीक परिभाषा इस प्रकार है लोकतंत्र जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए शासन होता है वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राज्य है क्योंकि यह जनसंख्या की दृष्टि से आज विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्रीय है भारत में संविधान को सर्वोच्च माना जाता है जो दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान के अनुच्छेद 79 में संसद की व्यवस्था की गई है जो लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर बनेगी संसद का मुख्य कार्य कानूनों का निर्माण करना होता है हम यह भी जानते हैं कि भारतीय संविधान के अनुसूची 7 में केंद्र, राज्य व समवर्तीसूची में शक्तियों का विभाजन किया गया है क्योंकि भारत एक संघीय राज्य है भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक मैं संघीय राज्य का वर्णन किया गया है केंद्र सूची में लगभग 97 विषय हैं जो राष्ट्र स्तर के होते हैं जैसे की रेल सेवा डाक सेवा विदेशी संबंध आदि जो मुख्य तौर पर भारत को एक सशक्त और अखंड भारत बनाने के निर्माण में सहायक होते हैं इन पर कानून बनाने का अधिकार संसद को होता है। संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्यसभा का वर्णन किया गया है जिसमें अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं और सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा विशेष ख्याति प्राप्त नागरिकों मनोनीत किए जाते हैं राज्यसभा के सदस्य के लिए योग्यता आयु 30 वर्ष होनी चाहिए वह भारत का नागरिक होना चाहिए पागल व दिवालिया नहीं होना चाहिए आदि निर्धारित की गई हैं यह सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं और इसको उच्च सदन के नाम से जाना जाता है वर्तमान में लगभग 245 सदस्य हैं । दूसरा लोकसभा अंग होता है जो सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय अंग होता है इसका वर्णन संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है इसमें सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 हो सकती है वर्तमान में 245 हैं और संविधान के अनुच्छेद 331 में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो लोगों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जा सकता है यह उस जाति के लोग होते हैं जिसे जिन्हें आम चुनाव में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त न हुआ हो अर्थात उस जाति का कोई भी लोकसभा सदस्य निर्वाचित न हुआ हो यह वह जाति होती है जो जनसंख्या की दृष्टि कम होती है और संविधान में इसके विशेष मानक निर्धारित किए गए हैं, लोकसभा के सदस्यों की योग्यता आयु 25 वर्ष पूरी कर चुका हो वह भारत का नागरिक हो पागल या दिवालिया ना हो आदि निर्धारित की गई हैं भारत में लोकसभा के चुनाव प्रथम बार 1952 में हुए 1952 से लेकर अभी तक 17 बार लोकसभा के चुनाव संपन्न हो चुके हैं हाल ही में 2024 में 18वीं लोकसभा के चुनाव संपन्न होने वाले हैं लोकसभा के सदस्य जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं इसमें भारत के प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार प्राप्त होता है जिसकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 में वयस्क मताधिकार का वर्णन किया गया है, 61 वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा 1989 में मतदान देने की आयु को 21 वर्ष से घटकर 18 वर्ष कर दी गई है। अब भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है और जिसकी भारतीय निर्वाचन नामावली में नाम अंकित है वह लोकसभा व विधानसभा के सदस्यों के लिए अपने मत का प्रयोग करता है उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में कानून बनाने में महत्वपूर्ण योगदान जनता का होता है क्योंकि व्यवस्थापिका का निर्माण जनता के द्वारा होता है और विधायिका के द्वारा कानूनों का निर्माण होता है तथा कानूनों को लागू करने कि जिम्मेदारी कार्यपालिका के हाथ में होती है और कानूनों की व्याख्या करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के हाथ में होती है, भारतीय संविधान में एक यह अनोखी व्यवस्था है जो भारत को अन्य राष्ट्रों से अलग बनाती हैं व्यवस्थापिका का निर्माण राज्यसभा लोकसभा और राष्ट्रपति से होता है राष्ट्रपति उन्ही कानूनों को मान्यता देता हैं जो लोकसभा और राज्यसभा में पास हो जाते हैं जिनके पास होने की परिपाटी अलग-अलग रूप से निर्धारित की गई है किसी कानून को साधारण बहुमत से पास किया जाता है तो किसी को दो तिहाई बहुमत से व किसी को विशेष बहुमत और+आधे राज्यों की विधानसभाओं के समर्थन से पास किया जाता है। उसके बाद राष्ट्रपति महोदय किसी कानून को अपनी संतुष्टि प्रदान करता है। वैसे तो भारत में अध्यादेश द्वारा भी कानून बनाए जाते हैं राष्ट्रपति के पास विशेष शक्ति है जिसका वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 में किया गया है लेकिन जो कानून अध्यादेश द्वारा बनाया जाता है वह 6 महीने से अधिक अस्तित्व में नहीं रह सकता यदि 6 महीने से अधिक उसे अस्तित्व में रहना है तो उसे भारतीय संसद द्वारा पास होना आवश्यक होता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय संसद जिसका वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 में किया गया है। वह समस्त भारत के लिए कानून बनाती है जिसका मुख्य उद्देश्य है जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना जनता में अमन और चयन स्थापित करना शांति, सुरक्षा, शिक्षा व चिकित्सा आदि कि सुविधा प्रदान करना, बाहरी आक्रमण से लोगों की रक्षा करना आदि होता है इस कार्य को जनता के जनप्रतिनिधि पूरा करते हैं जैसे कि हमने बताया है की लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन 5 वर्ष के लिए होता है जब लोकसभा के सदस्य जनता के समक्ष जाकर वोट मांगते हैं तो वह विभिन्न प्रकार के वादे वह आश्वासन जनता को देते हैं और निर्वाचित होने के बाद जो वादे और आश्वासन जनता को दिए थे उसे पूरा करने के लिए वह सरकार में सक्रिय रहते हैं यदि वह जनता की मनसा और आशा के अनुरूप निर्वाचित होकर कानून नहीं बनाते हैं तो जनता अगले आम चुनाव में उनका मूल्यांकन व समीक्षा करती है और जनता उस पार्टी और उस पार्टी के प्रत्याशी का विरोध करती है और उसके विपक्ष में मतदान करती है। लेकिन यदि वह जनता की उम्मीद के अनुरूप कानून बनाते हैं और जो वादे किए थे उन्हें पूरा करते हैं तो जनता उनकी समीक्षा करते हुए उनका भरपूर सहयोग करती है और उन्हें पुन: निर्वाचित कर कर उन्हें लोकसभा भेजती है लेकिन बड़ा दुख का विषय है हमारे यहां 1952 से लेकर 17वीं लोकसभा तक जो मतदान का प्रतिशत रहा है वह बड़ा दयनीय रहा है आज तक भी 70 % के पर मतदान नहीं कर पाए हैं और शहरी क्षेत्र में तो इसकी स्थिति और भी दायिनी होती है मैं इस समाचार पत्र के माध्यम से जनता जनार्दन से जो लोकतंत्र की रीड होती है उससे अपील करता हूं कि वह अधिक से अधिक अपने मत का प्रयोग करें जिससे कि कोई गलत जनप्रतिनिधि निर्वाचित ना हो पाए यदि आपके मत का सदुपयोग न करने से व मत का प्रयोग न करने से यदि कोई गलत व्यक्ति निर्वाचित हो गया तो हमारा वह सपना टूट जाएगा जो हमारे शहीदों ने हमारे लिए देखा था। मैं इस लेख के माध्यम से उन सभी नागरिकों से भी अपील करता हूं जिनकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है और किसी कारणवस अभी तक उनका अपने क्षेत्र की निर्वाचन नामावली में नामांकित नहीं हुआ है वह जल्दी से जल्दी अपनी वोट बनवाएं और इस लोकतंत्र के महायज्ञ में अपनी आहुति देने के कर्तव्य को पूरा करें। मत देने से पहले सभी नागरिक से मेरा नम्र निवेदन है कि वह अपनी अंतरात्मा, विवेक और पूर्ण मूल्यांकन, शमीक्षा के आधार पर एक ऐसी सरकार को चुने जो भारत को दुनिया के एक महान शक्ति के रूप में स्थापित कर सके और पहचान दिला सके जहां नागरिकों को उनकी मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ रोजगार, शांति, सुरक्षा, प्रेम और धार्मिक सहिष्णुता समानता न्याय बंधुत्व के उद्देश्य को पूरा करें जनप्रतिनिधि का मूल्यांकन करते समय उसके व्यक्तित्व उसकी विचारधारा उसका समाज के प्रति समर्पण व्यक्तिगत हित की अपेक्षा समाज हित को महत्व एक बिजनेसमैन से ऊपर होकर एक समाज सेवक आदि तत्वों को धान में रखकर अपने जन्म प्रतिनिधि का चयन करें क्योंकि भविष्य में वही आपकी आवाज को संसद में उठाएगा और आपकी आशाओं के अनुरूप कानून बनाने में अहम योगदान देगा इसीलिए मैं मत (वोट) पर अपनी स्वरचित कुछ लाइन इस 18वीं लोकसभा के महापर्व पर इस भगवान रूपी जनता को समर्पित कर रहा हूं “ वोट एकमात्र कागज का टुकड़ा या ईवीएम मशीन पर दबाए जाने वाला एकमात्र बटन ही नहीं है यह लोकतंत्र में जनता का भविष्य होता है।’’ मतदान के समय पर जनता जैसे जनप्रतिन निधि का चुनाव करती है वह उसी प्रकार का वहां पर जीवन यापन करती है यदि वह मत के द्वारा अच्छी सरकार को निर्वाचित करती है तो उनका जीवन सुगम सरल शांति से परिपूर्ण होता है यदि वह गलत सरकार को निर्वाचित कर देती है तो उनको उसका परिणाम भुगतना पड़ता है इसीलिए अब्राहम लिंकन जी की परिभाषा स्टिक बैठती है लोकतंत्र सरकार वह सरकार होती है जो जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी जाती है इसमें जनता ही सर्वोच्च होती है आओ अपनी शक्ति का सदुपयोग करें और एक अच्छी सरकार को निर्वाचित कर कर अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें और लोगों को अधिक से अधिक मतदान के लिए जागरूक करें क्योंकि मतदान ही होता है हिंदुस्तान के प्रत्येक नागरिक की शान इसलिए तो सरकारें करती हैं उनको सलाम। लेकिन यह शक्ति केवल चुनाव के समय पर ही एक मतदाताओं के पास होती है लेखक प्रोफेसर बी एस रावत

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