‘कागज़’ फिल्म (सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित एवं पंकज त्रिपाठी द्वारा अभिनीत):डॉ शशि धनगर
फेस वार्ता । भारत भूषण शर्मा
कागज़ फिल्म शासन-प्रसाशन को तमाचा मारने के लिए पर्याप्त है…फिल्म हिट है, लोग प्रशंसा कर रहे हैं…4 स्टार मिले हैं…लेकिन आज भी देश में जीवित मृतकों की ज़मात में कोई कमी नहीं आयी है…
जीवित मृतकों की समस्या अकेली नहीं है…आम जनमानस की ऐसी हज़ारों समस्यायें हैं,
जिनका समाधान किसी अनपढ़- नौसिखिये को भी साफ समझ में आता है, लेकिन शासकीय-प्रशासकीय एवं न्यायिक स्तर पर मुद्दा ज्यों का त्यों रहता है… सरकारें बदलतीं हैं… वादे बदलते हैं, और फिर सरकारें बदलतीं हैं…लेकिन कड़वे सच नहीं बदलते… लालफीताशाही नहीं बदलती…भ्रष्टाचार नहीं बदलता…बल्कि रूप-स्वरूप बदलकर रच-बस जाता है, समाज में, सरकार में प्रशासन में और न्यायिक व्यवस्था में…मुद्दे उठते हैं… फिल्में बनतीं हैं… प्रशंसा होती है… पर समस्या रूप बदलकर जड़वत हो जाती है, इस निर्जीव संसार में…कब तेरहवीं मनेगी इस व्यवस्था की, इस इंतज़ार में जाने कितने समय- असमय चल बसते हैं…