गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय द्वारा 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया गया 

गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय द्वारा 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया गया 

Greater Noida/ www.facewarta.in

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस कार्यक्रम का आयोजन भौतिकी विज्ञान विभाग के सी0वी0 रमन क्लब, स्कूल ऑफ बायो-टेक्नॉलजी, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, स्कूल ऑफ वोकैशनल स्टडीज एण्ड अप्लाइड साइंस एवं स्कूल ऑफ इनफार्मेशन एण्ड कम्यूनिकेशन टेक्नोलोजी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस अवसर पर उक्त संकायों के समस्त विभागों द्वारा अपने विभाग के शोध एवं विकास कार्यों को दर्शाने वाले पोस्टर तैयार कर प्रजेंट किए गए। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत, कुलपति प्रोफेसर रवींद्र कुमार सिन्हा, अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रोफेसर एन0पी0 मलकानिया, कुलसचिव डॉक्टर विश्वास त्रिपाठी, प्रोफेसर संजय शर्मा, डॉक्टर कीर्ति पाल, कार्यक्रम संयोजक डॉक्टर मनमोहन सिंह सहित विभिन्न शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं ने विभागीय पोस्टरों का अवलोकन एवं शोधपरक चर्चा की। कुलपति प्रोफेसर रवींद्र कुमार सिन्हा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और देश में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने की शुरुआत तथा इसके 28 फरवरी को ही मनाए जाने के प्रसंग की चर्चा की एवं इसके महत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत जोकि कुमायूं एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के साथ ही देश के जाने माने शिक्षाविद भी हैं,

ने अपना व्याख्यान दिया। अपने व्याख्यान में प्रोफेसर राजपूत ने बताया कि रमन ने मात्र 7 वर्ष की उम्र में ही पॉल बर्ट की पुस्तक फर्स्ट इयर ऑफ फिज़िक्स तथा दूसरी पुस्तक फिज़िक्स बाई गैनॉट का अध्ययन आरंभ किया और घर पर उपलब्ध सामग्री से ही भौतिकी के प्रयोग प्रारंभ कर दिए। रमन द्वारा 11 वर्ष की उम्र में मेट्रिक, 16 वर्ष की उम्र में बी0ए0 तथा सर्वोच्च उत्कृष्टता के साथ एम0 ए0 तथा भारतीय वित्त सेवा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने का जिक्र कर उपस्थित छात्रों को प्रेरित किया। रमन द्वारा लेखा विभाग की नौकरी के साथ ही इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस से जुड़कर शोध जारी रखने एवं प्रतिष्ठित शोध पत्रों जैसे फिज़िकल रिव्यू एवं नेचर आदि में शोध पत्र प्रकाशित करने का जिक्र किया। कलकत्ता में फिज़िकल सोसाइटी स्थापित करने, विश्वविद्यालयों को ज्ञान-विज्ञान का केंद्र बनाने, प्रत्येक देश के व्यक्ति के लिए शिक्षा में अंग्रेजी की बाध्यता को खत्म कर मातृभाषा में शिक्षा की छूट जैसे रमन के विचारों पर जोर दिया। रमन द्वारा बिना पीएचडी उपाधि प्राप्त किए नोबेल पुरुस्कार के स्तर का शोध भारत में ही रहकर करने की विशेष चर्चा की। सी0वी0 रमन ने 28 फरवरी 1928 को प्रकीर्णित प्रकाश के ध्रुवण को देखा और इस क्रांतिकारी खोज की घोषणा 16 मार्च 1928 को बंगलुरु में की। प्रोफेसर राजपूत ने बताया कि सी0वी0 रमन खुद को नोबेल के लिए चुने जाने के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने 14 नवंबर 1930 को नोबेल समिति द्वारा इसकी घोषणा किए जाने से पूर्व जुलाई माह में ही पत्नी सहित स्वयं के लिए यूरोप के दो टिकट बुक कर दिए थे। प्रोफेसर राजपूत ने नोबेल पुरुस्कार लेते समय सी0वी0 रमन की उस पीड़ा का भी जिक्र किया कि वहाँ स्वतंत्र भारत का ध्वज नहीं था, चूंकि भारत उस समय एक पराधीन राष्ट्र था। रमन ने अपने शोध एवं छात्र हित के लिए समर्पण का उदाहरण देते हुए प्रोफेसर राजपूत ने बताया कि जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने 1954 में उन्हें भारत रत्न की सूचना देते हुए निश्चित तिथि पर सम्मान प्राप्त करने हेतु राष्ट्रपति भवन आने का आमंत्रण दिया तो उन्होंने अपने छात्र की पीएचडी की मौखिक परीक्षा होने के कारण आने में असमर्थता व्यक्त कर दी। साथ ही उन्होंने सरकार द्वारा उन्हें उपराष्ट्रपति बनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार करने की भी चर्चा की। अंत में प्रोफेसर राजपूत ने प्रकृति में सिमिट्री एवं ऊर्जा सरंक्षण के नियमों को विस्तार से समझाया। कार्यक्रम के अंत में अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रोफेसर एन0 पी0 मलकानिया द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर शक्ति साही द्वारा किया गया।

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